• 21 Dec, 2024

सनातन वर्णन के निर्माण की ओर

सनातन वर्णन के निर्माण की ओर

आज की तत्काल आवश्यकता है की आध्यात्मिक एवं बौधिक स्तर पर विकसित लोग सनातन धर्म के लिए खड़े हो, उसकी रक्षा करें और उसके प्रवक्ता और वार्ताकार बनें।

 

सनातन धर्म के बारे में लोगों की समझ इतनी निराधार एवं ग़लत क्यों है? हमारे पास सनातन धर्म का एक सामंजस्यपूर्ण, सुकृत वर्णन क्यों नहीं है ?

मेरी विचार में, इस के तीन महत्वपूर्ण कारण हैं।

प्रथम, सत्य यह है की आधुनिक भारत के किसी भी विद्यालय या विश्वविद्यालय में ना तो सनातन धर्म की शिक्षा प्रदान की जाती है ना ही उसके विषय में कोई चर्चा की जाती है। कई भारतीय युवा पीढ़ियाँ  किसी भी धार्मिक शिक्षा के बिना और अपनी आध्यात्मिक परंपरा के प्रति सच्ची सराहना के अभाव में बड़ी हुई हैं।

द्वितीय, सनातन धर्म के अधिकांश गुरु एवं आचार्य धर्म के विषय में अभी भी पुरानी, पारम्परिक भाषा में बातचीत करते हैंआम तौर पर पंथ की भाषा जो की आलोचनात्मक विचारों या आध्यात्मिक साधना को प्रोत्साहित नहीं करती। इस प्रकार की भाषा एवं अभिव्यक्ति अभी भी आस्था पर आधारित है, अपने सिद्धांतों को निर्विवाद मानती है और किसी भी प्रकार के मतभेद या स्वतंत्र विचारों को स्वीकार नहीं करती, इब्राहीम धर्मों के लहजे और भाषा की तरह।

तृतीय, सार्वजनिक क्षेत्र मेंसनातन धर्म की अनुचित व्याख्याओं और उसके प्रति भ्रान्तियों का उत्तर तर्कपूर्ण एवं दृढ़तापूर्वक रूप से शायद ही कोई देता है या देने की क्षमता रखता है। धर्म की घिसी-पिटी बातों, रूढ़िबद्ध धारणाओं, अंधविश्वासों, सतही सामाजिक प्रथाओं एवं तुच्छताओं को कोई नहीं सुधारता, जो सनातन धर्म के मौलिक विचारों के इर्द गिर्द काई की तरह जमा हो गई हैं।

इन पर गंभीरतापूर्वक और तत्काल ध्यान देने और इनमें सुधार करने की आवश्यकता है। उन सबके द्वारा जो सनातन धर्म का संरक्षण करना चाहते हैं। सनातन धर्म निश्चित रूप से कालातीत है, लेकिन इसकी अभिव्यक्ति समय के अनुसार प्रासंगिक होनी चाहिए। जो कोई भी सनातन धर्मऋषिओं का धर्मके गहन और विशाल रूप को समझता है, उसे यह स्पष्ट होगा कि सनातन धर्म के सत्यों और मूल्यों को संपूर्णतः वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत भाषा में व्यक्त किया जा सकता हैजो की सूक्ष्म से सूक्ष्म बुद्धि का भी ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है। सनातन धर्म की स्थापना करने वाले ऋषि एवं आचार्य केवल महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे, बल्कि तेजस्वी एवं मूल बुद्धिजीवी भी थे।

और इस में कोई संदेह नहीं है की हमें आध्यात्मिक एवं बौधिक स्तर पर विकसित लोगों की आवश्यकता है जो सनातन धर्म की रक्षा करें और उसके प्रवक्ता और वार्ताकार बनें। सनातन धर्म का प्रवक्ता बनने और उस के लिये संग्राम करने का अधिकार हर व्यक्ति को नहीं दिया गया है। ना ही किसी भी राम, श्याम या जदू को धर्म पर आक्रमण करने का अधिकार दिया गया है। जबकि अकड़ू और चिड़चिड़े मूर्ख उस स्थान की ओर भाग रहें है जहां जाने में देवता भी संकोच करते है, हमें अपना ध्यान सनातन धर्म के लिए एक सर्व- व्यापक, गतिशील एवं आधुनिक वर्णन के निर्माण पर केंद्रित करना चाहिये, शुरुआत में कम से कम भारत में।

 

अनुवाद: समीर गुगलानी

Partho Sanyal

Writer and poet, Partho is an exponent of integral Vedanta, and is a follower of Sri Aurobindo and the Mother. He writes and speaks on Vedanta, Sanatan Dharma and Sri Aurobindo's integral Yoga.

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