वेद में यज्ञ का अर्थ
यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यदि हम यज्ञ को इस भाव से समझेंगे तो वेद का अर्थ भी स्वतः प्रकट हो जाता है।
यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यदि हम यज्ञ को इस भाव से समझेंगे तो वेद का अर्थ भी स्वतः प्रकट हो जाता है।
वेद महासागर हैं। सूक्ष्म व सघन ज्ञान के। और यह ज्ञान का सागर पूरी मानवजाति की विरासत है।
Read Moreवैदिक प्रतीक साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। ये कल्पना या केवल काव्यात्मक आभूषण नहीं। वरन ये आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न रूपों का इंगन हैं।
Read Moreऋग्वेद कदाचित् मानवजाति का प्राचीनतम साहित्य हैं। समस्त भारत दर्शन, विश्व के धर्म व साहित्य उनसे अत्यंत प्रभावित हुए हैं किंतु उनका मूल अर्थ हम भारतीय ही भूल गए। यह आधारभूत अर्थ है उनका आध्यात्मिक ज्ञान व अनुभव, उनका मांत्रिक काव्य। इसी गहन बोध को आधुनिक काल में स्वामी दयानंद व उनके पश्चात श्री अरविंद ने पुनः उजागर किया। यहाँ हम उनके विवेचन व भाष्य से प्रेरित अनुवाद व विश्लेषण प्रकाशित कर रहे हैं।
Read Moreहर जगह पहुँचना भी संभव नहीं, परंतु ज्ञान बढ़ाने और अच्छी जानकारी प्राप्त करने के बहुत से साधन हैं। अच्छा हो कि दूसरों को जानने से पहले अपने परिवार को जानें। और सारा भारत ही हमारा परिवार ह...
Read Moreऋग्वेद कदाचित् मानवजाति का प्राचीनतम साहित्य हैं। समस्त भारत दर्शन, विश्व के धर्म व साहित्य उनसे अत्यंत प्रभावित हुए हैं किंतु उनका मूल अर्थ हम भारतीय ही भूल गए। यह आधारभूत अर्थ है उनका आध्यात्मिक ज्ञान व अनुभव, उनका मांत्रिक काव्य। इसी गहन बोध को आधुनिक काल में स्वामी दयानंद व उनके पश्चात श्री अरविंद ने पुनः उजागर किया। यहाँ हम उनके विवेचन व भाष्य से प्रेरित अनुवाद व विश्लेषण प्रकाशित कर रहे हैं।
Read Moreऋग्वेद कदाचित् मानवजाति का प्राचीनतम साहित्य हैं। समस्त भारत दर्शन, विश्व के धर्म व साहित्य उनसे अत्यंत प्रभावित हुए हैं किंतु उनका मूल अर्थ हम भारतीय ही भूल गए। यह आधारभूत अर्थ है उनका आध्यात्मिक ज्ञान व अनुभव, उनका मांत्रिक काव्य। इसी गहन बोध को आधुनिक काल में स्वामी दयानंद व उनके पश्चात श्री अरविंद ने पुनः उजागर किया। यहाँ हम उनके विवेचन व भाष्य से प्रेरित अनुवाद व विश्लेषण प्रकाशित कर रहे हैं।
Read Moreपहले मण्डल के प्रथम सूक्त में अग्नि की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। जैसे वे सदा शुभ ही करते हैं। भद्रम शब्द से अर्थ है वे जो सदा मंगल ही करें। इस सूक्त में दोनों भक्ति और ज्ञान योग का प्रादुर्भाव देखा जा सकता है। किस प्रकार मन केंद्रित होकर ऊर्जा से भर जाता है और किस प्रकार ऋषि भक्ति भाव से भरकर अग्नि को नमन करते हैं।
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