1) पहला सूत्र: पूरा वेद आध्यात्म है। यह मूल सूत्र या कुंजी है। यदि हम वेद तो केवल रूढ़ि या रीति (ritual) के रूप में लेंगे, तो हम इनका अर्थ व महत्त्व चूक जाएंगे I यास्क मुनि ने कहा था कि वेद के आध्यात्म को जानने के बाद और अर्थ ( अर्थात आदिदैविक व आदिभौतिक) छूट जाते हैं। यह सत्य है। स्वामी दयानन्द ने इसी अध्यात्म को समझाने हेतु अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। और श्री अरविन्द ने इसी आध्यात्म को अपने अनुवादों व विवेचनाओं से समझाया। उनकी पुस्तक The Life Divine दिव्य जीवन इसी वैदिक वेदांत को आगे बढ़ाती है और उसे पुनः हमारे विचार व् दर्शन में लेकर आती है।
2) दूसरा सूत्र: इनकी भाषा सांकेतिक symbolic व प्रतीकात्मक है। जैसे हमने ऊपर कहा इनके अर्थ तीन स्तरों पर उठते हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है अध्यात्म। प्रतीक के रूप में काव्य प्रस्तुत करने के लिए कई अलंकार प्रयोग में लिए गए जैसे श्लेष अलंकार, यमक, उभय, रूपक, अनुप्रास व चिह्नीकरण Symbolism ।
श्लेष अलंकार वह जिसमें एक शब्द के कई अर्थ होते हैं I यमक वह जिसमें एक ही शब्द बार- बार प्रयोग में लिया जाता है किन्तु हर बार उसका अर्थ व भाव भिन्न होता है। उभय अलंकार में वर्ण और अर्थ दोनों की व्यंजना से काव्य सुसज्जित किया जाता है। इस प्रकार शब्दों, व्याकरण, छंद आदि से प्रयोग कर विभिन्न प्रतीकों से ऋषियों ने ये प्रकाश के गीत गाए।
और तो और वेद में ध्वनि भी संकेत है। नम्बर या अंक भी जैसे सात या तीन का जब भी प्रयोग होता है तो उसका अपना महत्व होता है। यदि छंद बदला जाता है तो उसका भी कोई कारण होता है। पर्यायवाची synonyms का भी बहुत उपयोग किया गया है। और प्रत्येक अलंकार बहुत ध्यान से और अत्यंत महीनता से कई आयामों को प्रदर्शित करता है।
3) तीसरा सूत्र: वेद महासागर हैं। कुछ भी व्यर्थ नहीं। इनमें सब कुछ समाहित किया गया है। वे देह, मन या प्राण को तुच्छ नहीं मानते। वे सभी स्तरों को अंदर लेकर रूपांतरित करते हैं। सभी सात लोक महत्वपूर्ण हैं। वेद में मायावाद कदापि नहीं है I दिव्यिकरण से अर्थ? चूंकि वेद हमारे सभी स्तर स्वीकार करते हैं, देह व प्राण भी, फिर उनमें चेतना जगाते हैं वे उन स्तरों को उच्चतम शिखर तक ले जा सकते हैं। देवों को बुला कर जन्म देने से साधक में तपस्या या अग्नि और तीव्र होती है। इस अग्नि के ऊपर उठने से और इंद्र के नीचे उतरने से देह के रूप में अंतर आता है। दिव्यिकरण यानि दिव्य बनाना।
जो श्री अरविंद को पढ़ते हैं उनके लिए वेद श्री अरविंद को समझने में सहायता करते हैं। श्री अरविंद भी बार- २ दिव्यिकरण या Divinisation पर बल देते हैं। बस उनके भाषा सीधी स्पष्ट है प्रतीकों में नहीं। उनके दर्शन में समझाया रूपांतरण या Transformation वेद के यज्ञ में भी देखा जाता है।
यह योग प्रक्रिया हमें वेद ने सिखाई। और यदि ध्यान से देखें तो पूरे वेद में विभिन्न प्रकार से इसी यज्ञ का वर्णन है। जिन्हें योग की लेष मात्र, थोड़ी भी जानकारी है वे इन सूत्रों के साथ सहज ही वेद का इंगन या बिम्ब समझ जाएँगे। और वेद को समझना हमारा पहला समूह में एक साथ योग भी है।
दिव्य बनाना योग के बिना नहीं हो सकता। सबसे पहले देह में पवित्रता लाना अग्नि के जलने से शुरू होता है। अग्नि से फिर सोम या आनंद पैदा होता है। यह सोम मन व प्राण को स्वच्छता व शक्ति से भर देता है। फिर इंद्र या दिव्य मन सरमा व सरस्वती की प्रेरणा से तन में छिपे सूर्य को ढूँढ लेते हैं।
4) चौथा सूत्र: वेद के अनुसार सारे जगत एक ही सत्ता है जो सब स्थानों पर विद्यमान है। इसे एकेश्वरवाद कहते हैं, monotheism ।
एक ईश्वर से आता है एकेश्वर। ईश से भाव स्वामी, जिसकी इच्छा, ईक्षा से सब होता है। पूरा जगत एक सत्ता है। वह सत्ता जगत में रची बसी है Immanent और उससे परे Transcendent भी है। मानव जाति के इतिहास में यह समझ पहली बार वेद में आई। हर मंडल में उस सत्ता का वर्णन है। तद् एकम् से अर्थ वह एक। इस एक सत्य, तद एकम, तद सत्यम, तद अद्भुतम, का उद्घोष प्रथम बार वेद में ही हुआ।
कई अनुवादक कहते हैं कि एक परम सत्ता या सत्य की समझ दसवें मंडल में ही आई। इसीलिए वे कहते हैं कि दसवाँ मंडल बाद में आया। यह सत्य नहीं हैं। एक सत् का बोध शुरू से ही और हर मंडल में आता है। अतः यह कहना कि दसवाँ मंडल बाद में आया सही नहीं लगता। पूरा वेद एक ही संहिता है।
5) पाँचवाँ: मंत्र से काव्य का उच्चतम उपयोग। मंत्र से ध्यान पहली बार छंद में हुआ। वाक् या उच्चारण से चित्त केंद्रित करना यह वेद की महान उपलब्धि है। हमारे ऋषि महान कवि थे। कवि से वेद में अर्थ वे जो दूर देख उसे ध्वनि की देह दें
6) छठाँ: वेद समझने के गूढ़ माध्यम हैं निरुक्त, मनोविज्ञान, छंद, व ध्वनि। किंतु वे सिद्ध होते है आध्यात्म से ही I अतः वेद की गहराई में मानसिक स्तर पर निरुक्त से उतरा जा सकता है किन्तु उसे प्रमाणित करने के लिए योग साधना की आवश्यकता होती है।
7) सातवां सूत्र: देव वे मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक सत्य हैं जो एक ईश्वर के विभिन्न रूप हैं। वे यज्ञ या योग में हमारी सहायता करते हैं। वे हमसे जलते नहीं। न ही वे आपस में लड़ते हैं। वे हमारे ही सत्य हैं। जैसे अग्नि आत्मन के सूचक हैं या सूर्य सत् के। उनके बिना यज्ञ सम्भव नहीं। प्रत्येक देव partner है
देव काल्पनिक नहीं एक ईश्वर की शक्तियाँ हैं जो हम आध्यात्मिक रूप से अनुभव कर सकते हैं। दिव् से अर्थ प्रकाश से भरा। देव जो देते है व द्यौ स्वर्ग में रहते
वेद के छः सूत्र: आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक, एक ईश्वर, तीन अर्थ, मंत्र शक्ति, सारे जगत पर प्रभाव, सब अंगों को दिव्य बनाते
8) आठवाँ: विश्व के सात लोकों का वर्णन। ईश्वर केवल चित्त, सत्, आनंद व महस ही नहीं वे मनस, प्राण व स्थूल पदार्थ matter भी हैं
दूसरे पंथों में ईश्वर केवल चित्त या आत्मन हैं। किंतु ईश्वर को स्थूल पदार्थ में देखना और सात स्तरों या लोकों का वर्णन महान उपलब्धि है। वेद के वर्णन वैज्ञानिक हैं व अनुभव से आए हैं। और सभी स्तर मनुष्य में या तो पहले से ही हैं या उनकी सम्भावना का विस्तार से वर्णन हुआ है।
9) नवाँ सूत्र: वेद की कथाएँ भीतरी जगत के अनुभव हैं। जैसे इंद्र द्वारा वृत्र का वध सूर्यलोक से प्रकाश की धाराएँ खुलने का विवरण है। वृत्र विघ्न है जो उस प्रकाश को निचले लोकों में आने से रोकता है। इसी प्रकार वल द्वारा छिपाई सूर्य किरणों को चट्टान में से खोज निकालना आध्यात्मिक सिद्धि है I इंद्र हमारा ही आलोकित मन Luminous Mind हैं। जब वे ऊपर से उतरते ज्ञान में अवरोध को दूर करते हैं, उस से ज्ञान की सरस्वती सत के लोकों से नीचे की ओर बहने लगती हैं और निचले लोकों का रूपांतरण करती हैं।
इसी प्रकार सृष्टि के सूक्त जैसे नासदीय, हिरण्यगर्भ व पुरुष सूक्त आंतरिक जगत के विवरण हैं। सभी घटनाएँ जैसे शुन: शेप भी योग में बंधनों से मुक्ति के प्रतीक हैं। इन संकेतों को कथानक myth न मान उनके अंदर गूढ़ अर्थ देखें। अंगीरस ऋषि को अग्नि पुत्र कहना भी इसी इंगन symbolism का भाग हैं।
10) दसवाँ सूत्र: यज्ञ वेद की पूर्ण समझ का केंद्र है। किंतु यह बहुत ही गहरा आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक अर्थ रखता है। यज्ञ से अर्थ है विष्णु और शिव, धर्म और योग। और स्वयं का और जो कुछ स्वयं के पास है उसका ईश्वर को पूर्ण समर्पण। यज्ञ बलि या sacrifice नहीं। ना ही यह रूढ़ि ritual है।
इसी कारण से वेद का जगत भर पे प्रभाव फैला। सभी समकालिक धर्म व पंथ वेद से प्रभावित हुए हैं। भारत के सभी दर्शन वेद की नींव पर ही विद्यमान हैं। यूनानी व जर्मन दर्शन, विश्व भर का साहित्य और आधुनिक संस्कृति वेद के ही वंशज हैं।
हमने जो थोड़ा सा महान गुरुओं से सीखा आपसे साझा कर लिया। वेद के दस सूत्र हमारे विचार से सबको जानने चाहिएँ। और भी सूत्र हैं किंतु अभी ये पर्याप्त होंगे। हमारे विचार से यदि आप इन दस सूत्रों को समझ लें तो वेद की कुंजी आपके हाथ में आ जाएगी। तब आप स्वामी दयानंद और श्री अरविंद को सीधे पढ़ या समझ सकेंगे। और आप भी जानेंगे कि राष्ट्र व विश्व के लिए उन्होंने कितना महान कार्य किया।