वेद में यज्ञ का अर्थ
यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यदि हम यज्ञ को इस भाव से समझेंगे तो वेद का अर्थ भी स्वतः प्रकट हो जाता है।
वैदिक प्रतीक साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। ये कल्पना या केवल काव्यात्मक आभूषण नहीं। वरन ये आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न रूपों का इंगन हैं।
वैदिक प्रतीक साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। ये कल्पना या केवल काव्यात्मक आभूषण नहीं। वरन ये आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न रूपों का इंगन हैं। वेद की एक बहुत बड़ी विशेषता है इनके प्रतीकों की समायोजना अर्थात ये सभी प्रतीक नैसर्गिक भाव से एक दूसरे से अंतरंग प्रकार से जुड़े हुए हैं। जैसे अग्नि और सूर्य दोनों में सम्बन्ध है दोनों में विभिन्न अग्नियों का होना सूर्य में सौर्य अग्नि विद्यमान है जिसका एक प्रकटन है यज्ञ की भौतिक अग्नि और योग की तपस अग्नि इसी प्रकार इंद्र भी अग्नि और सूर्य से सम्बंधित हैं क्योंकि उनमें वैद्युत अग्नि उपस्थित है।
ऐसा प्रतीकों का योजनात्मक प्रबंध विश्व के महानतम साहित्यों में भी नहीं देखा जाता है। केवल दांते Dante की दी डिवाइन कॉमेडी The Divine Comedy में प्रतीकों का ऐसा प्रयोजन किया गया है। फिर भी वेद दांते के संकेतों से कहीं अधिक विस्तृत, आयोजित व गहरे हैं।
एक और विशेषता है इन संकेतों का निरुक्त द्वारा भी सम्बंधित होना जैसे इंद्र की मूल ध्वनि है इध- जिससे भाव उठता है जलने का ( ईंधन शब्द भी इसी मूल ध्वनि से आता है) और इसी जलने के छिपे भाव से मनोवैज्ञानिक रूप से इंद्र अग्नि से अंतरंग हो जाते हैं। इसे प्रकार इंदु और इंद्र एक दूसरे के अनुप्रास हैं। इंदु से अर्थ है चंद्र या सोम देव जिनके पान से इंद्र सशक्त होते हैं और यज्ञ में साधक की और सहायता कर पाते हैं।
वेद में देखा जाता है कि कई देव प्रतीक भी हैं। जैसे अग्नि देव या सोम देव अग्नि प्रतीक हैं तपस्या के, परमात्मा की इच्छा शक्ति व दिव्य प्रेम के, और आत्मन व परमात्मन के किन्तु अग्नि केवल प्रतीक ही नहीं दिव्य शक्ति भी हैं जिनका यज्ञ में आवाहन किया जाता है और वे ऋषि के संग उनके आध्यात्मिक उत्थान में सहयोग करते हैं। इसी प्रकार सोम आनंद के द्योतक हैं किन्तु वे आदिदैविक व आध्यात्मिक शक्ति भी हैं। वेद में प्रतीक सत्य से दूर नहीं। श्री अरविन्द कहते हैं कि वेद में प्रतीक यथार्थ हैं और यथार्थ प्रतीक।
आधुनिक लक्षण विज्ञान Semiotics के अनुसार लक्षण Signifier और उसके तात्पर्य या अभिव्यंजना Signified में कोई सम्बन्ध नहीं। वे दोनों अनायास ही भाषा में प्रयुक्त हुए और लक्षण का उसके तात्पर्य से जुड़ जाना केवल संयोग की बात है। संस्कृत भाषा विज्ञान के अनुसार किसी भी नाम और उसके भावार्थ में गहन सम्बन्ध है। प्रत्येक बीज ध्वनि का अपना गुण होता है जिसका कारण है हमारी मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया का अर्थात लक्षण और उसके भावार्थ में दूरी नहीं बल्कि गुप्त और गहरा सम्बन्ध है। इसी प्रकार प्रतीक का उसके इंगन से छिपा जुड़ाव है जो उसके नाम के निरुक्त में भी देखा जाता है और उसके आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक प्रभाव में भी।
वेद की आधुनिक शोध में उनके प्रतीकों पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। वेंडी डोनिगर Wendy Doniger कहती हैं कि वेद में प्रत्येक मन्त्र में प्रतीकात्मकता Symbolism देखना आलस मात्र है। किन्तु वैदिक प्रतीकों की और यदि लेश मात्र भी ध्यान दें तो ज्ञात होगा कि इन्हें समझने के लिए पुरुषार्थ व अध्ययन की आवश्यकता होती है। ये न केवल गूढ़ हैं बल्कि एक स्तर पर जटिल भी इन्हें समझने के लिए ध्यान व मनन की साधना आवश्यक होती है। वेद में प्रतीकों की गूढ़ता आधुनिक काल में पहली बार श्री अरविन्द के लेखों व विवेचनाओं में समझाई गई है।
वेद के बिम्ब व संकेत सभी धर्मों व पंथों ने यथा रूप अपना लिए जैसे अग्नि के लिए यूनानी Greek में Agape अगापे शब्द का प्रयोग होता है जिसे ईसाई धर्म में दिव्य प्रेम के रूप में अपना लिया गया। इसी प्रकार वैदिक शब्द अंगिरस से उत्पन्न हुआ है शब्द एंजेल Angel देव की मूल ध्वनि दिव- से आता है डिवाइन Divine और दस्यु से आते हैं शब्द डेविल Devil उसी प्रकार जेनेसिस बाइबिल Genesis Bible में सृष्टि का आरम्भ होता है जल के विशाल निकाय से कुरान में नूर का दिव्यता से सम्बन्ध भी वेद से आया है। हमारे विचार से जेहोवाह Jehovah भी संस्कृत शब्द द्यौ- वह का ही तद्भव रूप हैं।
मानव जीवन स्वयं भी वैदिक प्रतीक है। क्योंकि मनुष्य परमात्मा व ब्रह्माण्ड की ही भौतिक या मृत्यु लोक में अभिव्यक्ति या प्रकटन है। इसी प्रकार पुरुष और स्त्री का विवाह भी एक प्रतीक है विष्णु और उनकी दिव्य शक्ति के पुनः एकीकरण का विवाह का मंडप भी सम्पूर्ण जगत का द्योतक है। चित्त के अति विकसित लोकों में इच्छा शक्ति, संकल्प व उनके क्रियान्वयन में कोई अंतर नहीं या जैसे प्लेटो Plato ने कहा आइडियल Ideal जगत की अभिव्यक्ति है भौतिक जगत या बाहरी जगत।
वेद में प्रतीक केवल दृष्टि हेतु नहीं डेविड फ्रौले David Frawley कहते हैं कि वेद में ध्वनि- प्रतीक- अर्थ Sound-Symbol-Idea एक संग प्रयुक्त होते हैं। वेद में प्रतीक दिखाई देते हैं किन्तु मन्त्र का वाचन व श्रवण स्वयं ही प्रतीक है उस शब्द ब्राह्मण के आवाहन का जिनसे सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ है। मन्त्र दिखाई भी देते हैं सुनाई भी और उनके केंद्र में है वेद का सबसे अहम प्रतीक, यज्ञ जिससे अर्थ है स्वयं परमात्मा, विष्णु एवं शिव यज्ञ ही धर्म है और यज्ञ ही योग और यदि ये वैदिक प्रतीक सरल हो जाएं तो वेद का आध्यात्मिक अर्थ भी स्पष्ट हो जाता है।
Author, poet, philosopher and medical practitioner based in Florida, USA. Pariksith Singh is on the advisory board of Satyameva.
यज्ञ वेद का मुख्य प्रतीक है। यदि हम यज्ञ को इस भाव से समझेंगे तो वेद का अर्थ भी स्वतः प्रकट हो जाता है।
वेद महासागर हैं। सूक्ष्म व सघन ज्ञान के। और यह ज्ञान का सागर पूरी मानवजाति की विरासत है।
ऋग्वेद कदाचित् मानवजाति का प्राचीनतम साहित्य हैं। समस्त भारत दर्शन, विश्व के धर्म व साहित्य उनसे अत्यंत प्रभावित हुए हैं किंतु उनका मूल अर्थ हम भारतीय ही भूल गए। यह आधारभूत अर्थ है उनका आध्यात्मिक ज्ञान व अनुभव, उनका मांत्रिक काव्य। इसी गहन बोध को आधुनिक काल में स्वामी दयानंद व उनके पश्चात श्री अरविंद ने पुनः उजागर किया। यहाँ हम उनके विवेचन व भाष्य से प्रेरित अनुवाद व विश्लेषण प्रकाशित कर रहे हैं।