अक्सर सभी की इच्छा होती है की विदेश यात्रा पर जाए, संसार की अलग अलग जगहों पर घूमा जाए, उनके बारें में जानकारी प्राप्त की जाए। बहुत अच्छी बात है, परंतु इससे पहले क्या ये जरूरी नहीं की हम अपने महान देश भारत के बारे में भी पूर्णतया, या जितना भी संभव हो सके उतना जाने। अगर हम ऐसा नहीं करते तो फिर तो वही बात हुई कि अपने घर को संवारने की बजाए दूसरों के घरों में झाँक रहे हैं।
माना कि हर जगह पहुँचना भी संभव नहीं, परंतु ज्ञान बढ़ाने और अच्छी जानकारी प्राप्त करने के बहुत से साधन हैं। अच्छा हो कि दूसरों को जानने से पहले अपने परिवार को जानें। और सारा भारत ही हमारा परिवार है।
हम सभी ने दक्षिण भारत के शहर जैसे की बैंगलोर, मैसूर, मदुरई, विजय नगर, चेन्नई, पांडिचेरी का नाम तो जरूर सुना होगा, पर पांडिचेरी के बिल्कुल करीब क़ुदरती तौर से ख़ूबसूरत, एक विशेष नगर ' आरोविल' के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। क़ुदरत को प्यार करने वालों के लिए तो यह धरती पर स्वर्ग के समान है। जनसंख्या बहुत कम है, मगर 58 देशों के लोग यहाँ पर आकर बस चुके हैं। हर साल लगभग दो सौ देशों से पर्यटक यहां पर आते हैं। तमिलनाडु के इस शहर का इतिहास कुछ अलग ही है। खुशकिस्मती से मुझे दूसरी बार यहां आने का मौका मिला तो सोचा कि कुछ और पाठकों को भी इस हरे भरे स्वर्ग से रूबरू करवाया जाए। अपने लेख में मैंने दूसरी बार स्वर्ग शब्द का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि इस शहर के लोगों, नियमों, बातों के बारे में जब आप जानेंगे तो आपको भी कुछ ऐसा ही लगेगा।
आरोविल, दक्षिण भारत के उत्तरी पांडिचेरी से लगभग बारह किलोमीटर दूर है। आरोविल का उद्घाटन, मानव एकता को समर्पित अंतरराष्ट्रीय नगर बनाने के उद्देश्य से 28 फरवरी 1968 को रस्मी रूप से किया गया था। पेरिस में पैदा हुई एक फ्रेंच महिला ' मीरा अल्फासा' आरोविल की संस्थापिका थीं, जिन्हें श्री अरविंद आश्रम पांडिचेरी की जिम्मेदारी लेने के बाद ' श्री माँ' के नाम से जाना गया। सन् 1973 में अपना भौतिक शरीर त्यागने तक उन्होंने इसके विकास की ओर पूरा ध्यान दिया।
इस शहर का उद्देश्य मानव एकता है। श्री माँ आरोविल जैसी परियोजना का सपना बहुत देर से देख रहीं थीं। 1965 से इस पर काम शुरू हो चुका था। एक फ्रांसीसी आर्किटेक्ट ‘ रोज़े ओजे’, को इस शहर का नक्शा तैयार करने की जिम्मेवारी सौंपी गई। जमीन की खरीदारी करना पहला काम था तो इसकी शुरुआत की गई। इस परियोजना में दिलचस्पी लेने वाले लोग उस समय ज्यादातर पांडिचेरी में रह रहे थे। 28 फरवरी 1968 में 5000 लोगों की उपस्थिति में मानव एकता के प्रतीक के रूप में कमल कलिका के आकार के जलपात्र के चारों तरफ आरोविल घोषणा पत्र, सारे भारत और विश्व की मिट्टी को रख कर समारोह किया गया। इस समारोह में पहुंचे ख्याति प्राप्त लोग बस्तियों में रुके।
आगे बढ़ने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं। श्री अरविंद, एक योगी, जिनका जन्म 15 अगस्त 1872 में कलकत्ता में हुआ, छोटी उम्र में ही पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए। 21 साल की उम्र में वापस आकर उन्होंने बड़ौदा राज्य के शासन प्रबंध में 13 साल काम किया। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में खुल कर भाग लेने की लिए 1906 में वह कलकत्ता आ गए, जहाँ उन्होंने ‘ वन्दे मातरम’ नाम के समाचार पत्र की शुरुआत की और उसके माध्यम से देशवासियों को पूर्ण स्वराज की ओर संघर्ष के लिए प्रोत्साहित किया, जेल भी गए।
एक योगी के रूप में 4 अप्रैल 1910 को वह पांडिचेरी पहुँचे। बहुआयामी गुणवती ' श्री माँ' जिनके बारे में पहले बात की गई है, 1914 में पहली बार श्री अरविंद से मिली और उन्होंने दार्शनिक मासिक पत्रिका ' आर्या' की शुरुआत की। कुछ जरूर कारणों के चलते एक बार वो वापस फ्रांस चली गई, परंतु 1920 में वो फिर से पांडिचेरी आ गई और उसके बाद कभी वापिस नहीं गई। 1926 में श्री अरविंद ने बाहरी दुनिया से अपना नाता तोड़ लिया मगर पत्राचार एवं साहित्यिक कार्य करते रहे। उन्होंने अपने सभी कामों का उत्तरदायित्व श्री माँ को सौंप दिया। श्री अरविंद का ' नई चेतना पर प्रकाश के अवतरण' का काम जिसे उन्होंने ' अतिमानस' का नाम दिया, सन् 1950 तक यानी कि उनके भौतिक शरीर त्यागने तक चलता रहा।
पांडिचेरी में बने आश्रम का श्री माँ ने संचालन किया, 17 नवम्बर 1973 तक जब तक वो इस भौतिक संसार में रही, उनका सारा ध्यान आरोविल की प्रगति पर ही रहा। आरोविल की आत्मा ' मातृ - मंदिर' यहीं पर है। अगर कोई अंदर तक जाकर इसके दर्शन करना चाहे तो इसके कुछ नियम हैं।
श्री माँ के मार्गदर्शन में आरोविल एक दानशील संगठन की परियोजना के रूप में शुरू किया गया। ' आरो' का मतलब है रोशनी, प्रकाश, यानी की अंदरूनी प्रकाश पुंज, ' विल' का मतलब है विलैज। कुछ जमीन दान में मिली तो कुछ खरीदी गई। सारी ज़मीन बंजर ही थी। आज जो यहाँ अंतहीन हरियाली देखने को मिल रही है, वो यहाँ के निवासियों के खून पसीने का फल है।
आरोविल के बारे में कुछ विशेष बातें :
- आरोविल एक अविभाजित समाज है। यहाँ के काम, मामले समितियों द्वारा ही संचालित किए जाते है। सरकार का हस्तक्षेप कम है।
- आरोविल के पक्के निवासी सिर्फ 3200 के क़रीब लोग ही हैं। परंतु आसपास के बहुत से लोगों को यहां पर रोजगार मिला हुआ है।
- यहाँ पर नकद धन का प्रयोग बहुत कम है। बाहर से आकर ठहरने वालों के लिए व्यवस्था है, पर लोकल निवासियों के लिए तो लेन देन का विवरण रजिस्टर द्वारा ही हो जाता है।
- यह स्थान अंतहीन शिक्षा का भंडार है, पर तरीके अलग हैं। श्री अरविंद के अनुसार गुरु कोई उपदेशक या काम लेने वाला नहीं, वो तो एक सहायक और मार्गदर्शक है। उसका काम दबाव डालना नहीं, सुझाव देना है। वो सिर्फ विद्यार्थी के मन को ही प्रशिक्षित नहीं करता बल्कि किस तरह ज्ञान के साधनों में निपुण हुआ जाए, इस प्रक्रिया में सहायता एवं उत्साह प्रदान करता है। ज्ञान प्राप्ति की राह दिखाता है।
- आरोविल किसी विशेष व्यक्ति का नहीं है। यहाँ ज़मीन, अचल सम्पति ( भवन, उत्पादन यूनिट्स आदि) यहाँ के निवासियों की नहीं अपितु आरोविल की सामूहिक संपत्ति का अंश है। घर बना कर रहा जा सकता है, पर उसे बेचा नहीं जा सकता। गाड़ियां, फर्नीचर वगैरह निजी संपत्ति मानी जाती है।
- यहाँ पर बहुत सारे लघु उद्योग , सोलर सिस्टम, स्वास्थ्य केंद्र, आस पास के गांवों से व्यापारिक संबंध, बुटीक, शुद्ध आरगैनिक भोजन के अलावा हर तरह की बेसिक आवश्यकताओं की पूर्ति की अच्छी व्यवस्था है।
हर प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए धन की ज़रूरत तो हमेशा ही रहती है। कुछ मदद हर साल भारत सरकार करती है, विदेशों से सहयोग भी मिलता रहता है, प्रोजेक्ट में हिस्सा मिलता है, दानी सज्जन भी है। परंतु जिस उद्देश्य को मुख्य रख कर ये शुरुआत की गई है, वो स्वप्न जो श्री अरविंद और श्री माँ ने बरसों पहले देखा था, जब वो सही मायनों में पूरा होगा तो धरती पर यहाँ का नज़ारा कुछ हट कर और अलग सा ही होगा।
अगर कोई यहाँ आना चाहे तो हवाई जहाज या ट्रेन से चेन्नई तक फिर उसके बाद तीन घंटे सड़क मार्ग से आना होगा। देश विदेश से यहाँ अक्सर सैलानी आते रहते है, पर आरोविल को अगर सही ढंग से अनुभव करना हो तो पाँच सात दिन प्रकृति की गोद में इस ख़ूबसूरत जगह पर रहें। देश विदेश के लोग मिलेंगे तो वहाँ की संस्कृति के बारे में जानने का मौका भी मिलेगा। इंटरनेट से पूरी जानकारी प्राप्त करें और एडवांस बुकिंग करवाएँ।
यहाँ पर रहने के लिए हर प्रकार के, हर बजट के गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। हर उम्र, हर देश के लोग यहां पर मिलेंगे। बीमारियों के इलाज के प्राकृतिक और आयुर्वेदिक केंद्र भी मौजूद है, जहाँ पर रहने की सुविधा भी है। यहाँ पर आने के लिए जरूरी नहीं कि आप योगी हैं या श्री अरविंद और श्री माँ के शिष्य है। घूमने फिरने के लिए जब मर्जी आए परंतु सितंबर से मार्च तक का मौसम बहुत बढ़िया होता है। समुद्र किनारे होने के कारण यहां ठंड नहीं होती या फिर नाममात्र होती है। एक बार इस पवित्र स्थान की खूबसूरती निहारने के बाद बार बार आने को मन करेगा!