यह हृदय को छू जाता है और हमें जताता है कि हमारे ऋषियों में हमारे लिए कितना प्रेम था। इस पूरे सूक्त में बहुत संयम है, आत्म- नियंत्रण है। कहीं भी वे संवेदनशीलता में नहीं बहते। किन्तु एक श्वेत लौ जैसा यह पूरा सूक्त हृदय में भावों की निष्ठा व सरल हृदय से जगमगाता है।
आइये, इस सूक्त का अध्ययन करें। ( सभी अंग्रेज़ी अनुवाद श्री अरविन्द से उद्धृत हैं जिनके हिंदी अनुवाद का मैंने प्रयास किया है।)
X.191.1
संस॒मिद्यु॑वसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा॑न्य॒र्य आ ।
इ॒ळस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्या भ॑र ॥
O Fire, O strong one, as master thou unitest us with all things and art kindled high in the seat of revelation; do thou bring to us the Riches.
( हे अग्नि! हे शक्तिमान! तुम स्वामी की भांति हमें सभी वस्तुओं को के संग जोड़ते हो व श्रुति के उच्च स्थान पर प्रज्ज्वलित हो। हमारे लिए ( आध्यात्मिक) सम्पदाओं को अवश्य ले कर आओ।)
अग्नि से भाव है दिव्य प्रेम। स्वामी दयानन्द ने कहा था कि अग्नि आत्मन व परमात्मा के वाची हैं। अग्नि हमारा तेज हैं और दिव्य इच्छाशक्ति भी। और अग्नि हमारे हृदय में विद्यमान पुरुष भी। अग्नि हमारी आध्यात्मिक शक्ति हैं जो सूर्य में भी विद्यमान हैं और सारे जगत को एक सूत्र में बांधते हैं।
X.191.2
सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥
Join together, speak one word, let your minds arrive at one knowledge even as the ancient gods arriving at one knowledge partake each of his own portion.
( एक संग चलो, एक शब्द कहो, तुम्हारे मनों को एक ज्ञान पर आने दो। जैसे प्राचीन देव एक ज्ञान तक पहुँचते अपना अपना यथा स्थान ग्रहण करते हैं।)